संस्कृति सभ्यता व शिव की नगरी काशी

संस्कृति सभ्यता व शिव की नगरी काशी

Posted On : 2024-01-27

संस्कृति सभ्यता व शिव की नगरी (काशी)

शिव नगरी काशी को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जिसमें वाराणसी, मुक्ति नगरी, काशी विश्वनाथ नगरी, मोक्ष नगरी आदि प्रमुख हैं। यहाँ लोग शिक्षा व संस्कृति को समझने के लिए दूर से खिंचे चले आते हैं।

 सर्वप्रथम काशी का उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है; साथ ही इसका वर्णन भारतीय उपनिषदों ब्रह्म पुराण, स्कंद पुराण, शिव पुराण, अग्निपुराण और मत्स्य पुराण आदि में भी काशी का उल्लेख मिलता है।

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अमेरिकी इतिहासकार मार्क ट्वेन की मानें तो काशी इतिहास से भी पुराना है जहाँ इतिहासकार बेबीलोन ओर मिस्र की सभ्यता को पुराना मानते हैं, लेकिन वे इस के साथ इस बात से भी इनकार नहीं करते की उस समय में भी काशी अपने कला साहित्य वह अपने संस्कृति के लिए अपने प्रमुख स्तर पर थी। काशी प्राचीन समय से अपने मलमल, रेशम के कपड़े, हाथी दांत व मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है।

 

 काशी का इतिहास

 1194 ईस्वी में जयचंद की हार के बाद मोहम्मद गौरी ने बनारस को अपने साम्राज्य में मिलाया जिसके बाद उसने वहाँ पर हिंदू देवी देवताओं के मंदिरों सांस्कृतिक धरोहरों इत्यादि को खंडित किया और सोलहवीं शताब्दी में इसका नाम परिवर्तित कर मोहम्मदाबाद रख दिया।

 17 वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को लूटा व उसी स्थान पर विवादित ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करा दिया।

मुस्लिम आक्रांताओं के पतन वह मराठों के उभरते समय में मराठाओं ने काशी में घाटों का निर्माण कराया व अहिल्याबाई होल्कर ने काशी विश्वनाथ मंदिर को पुनर्जीवित किया।

 

हिंदूओं का काशी से जुड़ाव

काशी जो कि हिंदूओं के लिए एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। माना जाता है कि जो भी व्यक्ति काशी में देह का  त्याग करता है, स्वयं भगवान शिव उसके कानों में तारक मंत्र फूंककर उसे मोक्ष प्रदान करते हैं, और वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। शिव की नगरी जिसे स्वयं शिव ने स्थापित किया ओर पार्वती के साथ उन्होंने यही रहने का निश्चय किया जिसकी वजह से मान्यता है कि काशी कभी भी खत्म न होने वाली नगरी है क्योंकि इसके पालनहार स्वयं भगवान शिव हैं।

 

अन्य धर्म व सम्प्रदाय का काशी से संबंध

बनारस के समीप सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपने पांच शिष्यों को उपदेश दिया था। इसलिए काशी को बुद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में माना जाता है।

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए उनमें चार तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी, पार्श्वनाथ जी, सुपार्श्वनाथ जी चंदाप्रभु जी का जन्म काशी में ही हुआ था।

 आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जी बनारस आए और उन्होंने यही काशी अष्टकम की रचना की।

 यहीं पर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी कालजयी रचना राम चरित्र मानस को अस्सी घाट के किनारे लिखा।

 काशी में ही सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी ने काशी विश्वनाथ के मंदिर के पुजारियों के साथ सत्संग किया।

 काशी संत रैदास, कबीर, मीरा बाई व भारत रत्न बांसुरी वादक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मभूमि रही।

 

 काशी पहुंचने के लिए यातायात सुविधा

काशी सीधे सड़क मार्ग से भारत के अनेक स्थानों से आसानी से आया जा सकता है। यदि काशी वायु मार्ग से आना चाहते हैं, तो लाल बहादुर शास्त्री एअरपोर्ट पर आया जा सकता है। यहाँ भारत के अनेक शहरों से सीधी फ्लाइट चलती है। रेल से भी काशी में आसानी से आया जा सकता है, काशी में तीन प्रमुख रेलवे स्टेशन है; जिसमें पहला वाराणसी, दूसरा बनारस वह तीसरा वाराणसी कैंट है।

 

काशी के पर्यटन स्थल

 काशी विश्वनाथ मंदिर

12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ धाम जो कि गंगा के किनारे पर स्थित है। इसे अनेक बार मुस्लिम आक्रांताओं ने कई बार तोड़ा, लेकिन मंदिर हर बार उठ खड़ा हुआ। सन् 1835 ईस्वी में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर में 1000 किलो सोना दिया; जिससे मंदिर के बाहरी आवरण को सोने से ढक दिया गया। हाल ही में बने नए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से यह मंदिर दुनिया भर में अपनी भव्यता के लिए श्रद्धालुओं का केंद्र बना हुआ है।

 काल भैरव मंदिर

बाबा विश्वनाथ के दर्शन काल भैरव के दर्शन के बिना अपूर्ण माने जाते हैं। कहा जाता है की काल भैरव भगवान शिव का ही रुद्र अवतार हैं। प्राचीन कथा के अनुसार काशी में यमराज का प्रवेश वर्जित है, इसलिए यहाँ पाप और पुण्य के न्याय के लिए स्वयं शिव काल भैरव अवतार लिए इस मंदिर में विराजमान है। यहां काल भैरव को प्रसाद रूप में मदिरा पान कराया जाता है।

 संकट मोचन हनुमान मंदिर

संकट मोचन हनुमान मंदिर की स्थापना स्वयं महाकवि तुलसीदास जी ने कि थी माना जाता है यही वह स्थान है जहाँ हनुमान जी ने तुलसी दास जी को प्रत्यक्षदर्शन दिए ओर यहीं पर स्वयंभू अवतार में मूर्ति के रूप में विराजित हो गए। यहाँ पर हनुमान जी को शुद्ध घी से बने लड्डू का भोग लगाया जाता है।  

कुष्मांडा देवी मंदिर

 यह देवी का मंदिर लाल रंग में बना हुआ मंदिर है, जो कि अपने वृहद कुंड के लिए भी जाना जाता है। यह मंदिर संकट मोचन मंदिर के समीप ही है। यह मंदिर को 51 शक्ति पीठों में से एक भी माना जाता है।

अन्नपूर्णा माता मंदिर

 काशी विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण के पास ही अन्नपूर्णा माता का मंदिर है। यह भारत का इकलौता मंदिर है, जहाँ भोजन भगवान को भोग लगाने से पहले ही भक्तों को दे दिया जाता है। माना जाता है कि काशी में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं सो सकता इसकी जिम्मेदारी स्वयं माँ अन्नपूर्णा ने ली हुई है। इस मंदिर में भक्तों को दिन में तीनों समय निशुल्क भोजन कराया जाता है।

बनारस की गंगा आरती

 बनारस अपनी जीवनदायिनी गंगा को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मान उनको प्रत्येक शाम गंगा के अनेक घाटों पर बनारस में गंगा आरती की जाती है जिसमें दशाश्वमेधघाट, अस्सी घाट इत्यादि प्रमुख हैं।

आरती जो कि बहुत प्रशिक्षित पंडितों के द्वारा एक विशेष तरीके से की जाती है जो कि बनारस आए देश विदेश से पर्यटकों के लिए एक मुख्य आकर्षण का केंद्र रहता है।

 

बनारस के प्रमुख स्वादिष्ट व्यंजन

वैसे बनारस अपने पान के लिए विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन साथ ही साथ वह अपने सड़क किनारे चाट व दूध से बने अनेक पारंपरिक व्यंजनों के लिए जाना जाता है।

 बनारस में सुबह पुड़ी कचौड़ी सब्जी वह जलेबी से होकर दोपहर में छाछ, मलइयो (एक प्रकार का विशेष बनारसी व्यंजन जो दूध से तैयार किया जाता है) व शाम बनारसी भोजन से खत्म होती है।

  बनारस आने वाले टूरिस्ट बनारस के पान, मलईयो, कचौड़ी, एप्पल पाई, पूरी कचौड़ी इत्यादि व्यंजन का स्वाद लेना नहीं भूलते।

 

बनारस के प्रमुख पर्व त्यौहार

 बनारस अपनी सभ्यता संस्कृति के साथ अनेक पर्व त्योहारों को भी हर्षोल्लास के साथ मनाता है। जिसमें देव दीपावली, गंगा दशहरा, रंगभरी एकादशी व हनुमान जयंती आदि प्रमुख हैं।

देव दीपावली:- इस दिन गंगा के किनारे सभी घाटों को दीपकों वह रौशनी से सज्जित कर दिया जाता है जो की दिखने में बहुत सुंदर लगता है।

 रंगभरी एकादशी:- इस दिन बनारस में लोग रंगों से सड़कों को सराबोर कर देते हैं। कहा जाता है कि इस दिन ही गौना कराकर माता पार्वती को शिव शंकर बनारस में लेकर आए थे। इस दिन माता शंकर और पार्वती जी की पूजा की जाती है, और भगवान शंकर को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है।

 

बनारस घूमने के लिए सही समय

 बनारस पर्यटक लगभग हर मौसम में आते हैं; लेकिन बनारस में अधिकतर पर्यटक ठंड में आना अत्यधिक पसंद करते हैं।

 पर्यटन के हिसाब से सितंबर से अप्रैल का महिना सबसे बेहतर है।

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